Monday, December 26, 2011


A poem taught to me by Divedi sir in K V Rihand nagar in class 6th....
Dedicated to one of my good friend Late Capt Deepak Sharma a.k.a Gajani...you are missed and remembered








पुष्प की अभिलाषा

चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ

चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ

चाह नहीं, सम्राटों के शव
पर हे हरि, डाला जाऊँ

चाह नहीं, देवों के सिर पर
चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ

मुझे तोड़ लेना वनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पर जावें वीर अनेक ।।

1 comment:

  1. beautiful words dude...as the army paying 1/3rd of his income as "income tax" for protecting the nation...these words do heal a bit..

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